उत्तर-प्रदेश के बरेली के एक डाक्टर ने मानवता की एक नयी मिसाल कायम की है। बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि उत्तर प्रदेश में बरेली शहर के एक युवक द्वारा बेशुमार मुश्किलों का सामना करके करीब साल भर पहले शुरु की गई मुहिम के चलते ही चुनाव आयोग ने पिछले महीने देश के करीब एक करोड़ किन्नरों को मतदाता सूची में पुरुष एवं नारी से अलग श्रेणी में रखना मंजूर किया। किन्नरों को अलग पहचान दिलाने वाला यह युवक शहर के नामी गिरामी अस्पताल का मुख्य चिकित्साधीक्षक है। डा. सैयद एहतिशाम हुदा नामक इस फिजियोथेरेपिस्ट का ताल्लुक बरेली के एक प्रतिष्ठित घराने से है और वह अपनी विशेषज्ञता के सहारे कई प्रख्यात खिलाडियों समेत बेशुमार नामचीन हस्तियों को उनकी बीमारियों से निजात दिला चुका है। अलग-थलग पड़े किन्नरों के समाज में स्वीकार्यता दिलाने की उनकी मुहिम के बारे में पूछने पर डा. हुदा ने बताया कि करीब साल भर पहले एक किन्नर उनके पासस्पोंडिलाइटिस के इलाज के लिए आया मगर इस डर से कि कहीं डाक्टर साहब के बाकी मरीज भाग ना जाए। वह उनके कमरे में नहीं आया और बाहर इंतजार करता रहा। उन्होंने कहा, उसके पर्चे पर कई बार नजर पडने पर काफी देर बाद उसे अंदर बुलाकर पूंछा तो पर उसने कहा कि मरीजों के बीच आने के लिए उसे कई डाक्टर डांट चुके है लिहाजा वह अंत में दिखाने के लिए कमरे के बाहर बैठा था। डा. हुदा ने कहा कि एक इंसान होने के बावजूद समाज में किन्नरों के साथ हो रहे इस दोयम दर्जे के व्यवहार को देखकर वह आंदोलित हो उठे।
इस एक छोटी सी घटना ने उनके मन में किन्नरों के लिए कुछ करने का जज्बा पैदा कर दिया और उस दिन उनकी जिन्दगी को एक मकसद मिल गया। उन्होंने कहा किन्नरों के हक की लडाई छेडने पर शुरआती दौर में सबसे पहले घर पर ही मेरा विरोध शुरु हो गया। परिजनों ने तंज कसे और मेरी पत्नी ने रो-रोकर अपना बुरा हाल कर लिया। इतना ही नहीं किन्नरों की भी एक बाहरी आदमी की उनसे घुलने मिलने की कोशिश पर काफी तीखी प्रतिक्रिया रही और उन्होंने भी मेरी खूब फजीहत हुई। डा. हुदा ने बताया कि बडी मुश्किल से वह आखिरकार अपने मकसद के बारे में सबको आश्वस्त करके आगे बढ सके। उनकी पहल पर गत अप्रैल में यहां थर्ड जेन्डर इक्वेलिटी, विषय पर संपन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी में शायद पहली बार शिक्षाविदों,डाक्टरों बुद्धिजीवियों एवं समाज सेवियों के साथ किन्नरों को एक मंच पर स्थान दिया गया और लोग उनकी व्यथा-कथा से रबर हुए।
बाद में लोकसभा चुनाव के दौरान किन्नरों को साथ लेकर उन्होंने बरेली शहर के परंपरा से अपेक्षाकृत कम मतदान वाले इलाकों में असरदार मतदाता जागरकता अभियान भी चलाया। इसके बाद उन्होंने गत जून माह में चुनाव आयोग से मतदाता सूची में किन्नरों के स्त्री और पुरष से अलग श्रेणी में रखे जाने का अनुरोध किया। अलग-थलग पडे इस वर्ग को समाज की मुख्यधारा से जोडने के लिए डा. हुदा द्वारा किये जा रहे प्रयासों से मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला बहुत प्रभावित हुए। किन्नरों को उनका हक दिलाने के लिए उन्होंने आयोग से लगातार संपर्क बनाये रखा और इस सिलसिले में श्री चावला से दिल्ली में मुलाकात भी की। उपेक्षित किन्नर वर्ग के समाज में सम्मानपूर्वक खडा करने के लिए डा. हुदा द्वारा अनवरत की जा रही कोशिशों के नतीजतन चुनाव आयोग ने गत 12 नवम्बर को किन्नरों/ट्रांसंसेक्सुअलों को यह इजाजत देने का फैसला लिया कि अगर मतदाता सूची में वे अपने नाम का उल्लेख पुरष या महिला के रूप में नहीं कराना चाहें तो अपना लिंग बताने के लिए खुद को अन्य के रप में दर्ज करा सकते हैं।
इसके पहले मतदाता सूची में किसी किन्नर का नाम उसकी इच्छा के अनुसार स्त्री अथवा पुरुष श्रेणी में रखा जाता था। ज्ञातब्य है कि इस सफलता से उत्साहित डा. हुदा का कहना है कि किन्नर भी इंसान हैं और जरा से शारीरिक दोष की वजह से उनकी उपेक्षा ठीक नहीं है। उनको भी एक आम आदमी की तरह जीने का हक है और इस दिशा में चुनाव आयोग का फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है। आयोग द्वारा किन्नरों के लिए एक अलग श्रेणी निर्धारित किए जाने के कुछ दिन बाद ही डा. हुदा का आभार व्यक्त करने के लिए आल इंडिया किन्नर एसोसिएशन की अध्यक्ष सोनिया गुजरात से बरेली आयी और उसने किन्नरों की समाज में स्वीकार्यता के लिए शुरू की गई मुहिम की दिल से तारीफ की थी। डा. हुदा अब सदियों से उपेक्षित किन्नर वर्ग के पुनर्वास के लिए काम करना चाहते हैं ताकि प्रशिक्षित होकर वे गाने-बजाने के अलावा अन्य काम धंधे भी कर सकें
report-uni
by-himanshu joshi
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो,--------
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं।
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं।
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
fight for Eunuchs
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2 comments:
डा.साहब , आपका काम लाजबाब है लेकिन हैडिंग सही करवाईये आप जिनका इलाज़ करते है वह सब हिजंडे नही है
nice
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