दैनिक जागरण १०-०८-२०११प्रमोद यादव, बरेली यह एक संयोग ही था कि एक किन्नर ने एक डाक्टर के मन को झकझोर दिया और शुरु हो गया समाज के सबसे उपेक्षित वर्ग के अधिकारों का संघर्ष। सफर अकेले शुरु हुआ मगर अब कारवां बढ़ चुका है। छह साल में कई सफलतायें जुड़ी हैं डा।एसई हुदा के खाते में, लेकिन नासमझ दोस्तों की अर्थपूर्ण मुस्कराहट और बातों के बीच थर्ड जेंडर के अधिकारों के लिए लड़ रहे फिजियोथेरेपिस्ट डा. हुदा का संकल्प उनको मुख्य धारा से जोड़ने का है। डा. हुदा के पास 2005 में एक किन्नर इलाज कराने आया। उसने पर्चा पहले लगाया लेकिन उनसे मिलने सबसे बाद में पहुंचा। यह पूछने पर कि सबसे बाद में क्यों आए॥? उसका जवाब ही अपने आप में बड़ा सवाल था। बोला, क्या आप सभ्य समाज के बीच हमारा इलाज कर सकेंगे? इससे पहले जिन डाक्टरों के पास गये, सभी कहते थे कि सबसे बाद में आया करो। यही वह बात थी जो डा. हुदा के मन को कहीं गहरे तक छू गई और शुरू हो गया किन्नरों के अधिकारों के लिए संघर्ष। किन्नरों को अधिकार दिलाने के लिए डा. हुदा ने सैयद शाह फरजंद अली एजुकेशन एंड सोशल फाउंडेशन आफ इंडिया (सिस्फा इस्फी) बनाई। 2006 में अजमेर शरीफ गये और वहां से किन्नरों को एकजुट किया। वहां पर हर साल हजारों की तादात में किन्नर पहुंचते हैं। यही से किन्नरों के अधिकारों की लड़ाई शुरू हुई। शासन से पत्र व्यवहार शुरू किया और इससे आरटीआइ का जमकर इस्तेमाल किया। अंजान लोगों के लिए कई बार वह मजाक का विषय बने और जानने वालों ने भी खूब छींटाकशी की। लेकिन जब सबसे पहले मतदाता सूचियों में किन्नरों के लिए अलग से कॉलम बनवाने सफलता मिली तब उनके अभियान का कुछ-कुछ अर्थ लोगों की समझ में आने लगा। यह उनके लिए बड़ी और ऐतिहासिक जीत थी। इसके बाद लड़ाई शुरु हुई जनगणना में अलग से कॉलम बनाने की। तमाम भाग दौड़ के बाद पुरुष, महिला के बाद किन्नरों की गणना का कालम बना। यूनिक आइडी में टी अर्थात थर्ड जेंडर का कालम बनाने के लिए भी सरकार मान गई है। किन्नरों की गणना अभी पूरी नहीं लेकिन अनुमान के मुताबिक देश भर में करीब एक करोड़ किन्नर है। इसमें से करीब 20 हजार किन्नर सिस्फा इस्फी से जुड़ चुके हैं। अब उनकी अगली मांग है कि महिला आयोग के तर्ज पर किन्नर आयोग बने। इसके लिए वह जनहित याचिका दायर करने की तैयारी में हैं। उन्होंने कहा कि कानूनी रूप से किन्नरों को समाज में अधिकार मिल जाय तो वह मुख्य धारा में जीवन जी सकते हैं। इसी अभियान के साथ-साथ उन्होंने किन्नरों को शिक्षित करने का भी काम शुरू कर दिया है।
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो,--------
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं।
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं।
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
fight for Eunuchs
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