अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो,--------

अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो, कि दास्ताँ आगे और भी है
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!
अभी तो टूटी है कच्ची मिट्टी, अभी तो बस जिस्म ही गिरे हैं
अभी तो किरदार ही बुझे हैं।
अभी सुलगते हैं रूह के ग़म, अभी धड़कते हैं दर्द दिल के
अभी तो एहसास जी रहा है
यह लौ बचा लो जो थक के किरदार की हथेली से गिर पड़ी है
यह लौ बचा लो यहीं से उठेगी जुस्तजू फिर बगूला बनकर
यहीं से उठेगा कोई किरदार फिर इसी रोशनी को लेकर
कहीं तो अंजाम-ओ-जुस्तजू के सिरे मिलेंगे
अभी न पर्दा गिराओ, ठहरो!















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विचित्र या अदभुत

9:34 AM / Posted by huda /


बेमौसम की बरसात, बारह महीने मटर का मिलना। जब चाहो सो जाओ, सुबह चाय, ज़िन्दगी कभी सुस्त ज़रूरत से ज्यादा और कभी बहुत तेज़। बारिश की बूँद का छत के आँगन पर पड़े प्लास्टिक के तिरपाल पर टक-टककर गिरना और तेज़ बारिश तो और तेज़ टप-टप की आवाज़। हमें आवाज़ टप-टप की ही क्यों सुनाई देती है। चट-चट भी तो हो सकती थी।
गर्मी में आम का इन्तिज़ार, तरबूज़ भी होंगे। हो सकता है अगले बरस सर्दी में मिलने लगें सब। कोशिश करो राइगा नहीं जाती। मोबाइल पर मैसेज कभी बहुत अच्छे तो कभी अश्लील। सन्ता-बन्ता भी तो हैं। गाड़ी में तेल की सुई ऊपर-नीचे रोज़ थोड़ी। घबराकर पर्स पर नज़र, हर रोज़ कुछ नया करना है। चलो कुछ पढ़ लिया जाए। क्या-क्या पढ़ें। घूम-फिरकर सब किताबों में वही तो लिखा है। हाँ, कवर ज़रूर बदल गये हैं चटकीले रँगों वाले। आज बातनहीं करेंगे किसी से। सिर्फ खामोश रहेंगे। लोग रहने दे तब तो। उर्दू अदब का भीजवाब नहीं। ऐसा मेरे सारे हिन्दु दोस्त कहते हैं। और मुसलिम दोस्त कहते हैं उर्दू पढ़ने से नौकरी थोड़े ही मिलेगी। बेचारी उर्दू। ग़ालिब साहब को क्या सूझी। जो उर्दू और फारसी में दे मारा। अंग्रेज़ी में लिखते तो शायद छः सात नॉबेल मिल जाते। कुछ मरने से पहले तो कुछ मरने के बाद। एक मेल करना था ज़रूरी, अंग्रेज़ी में जवाब देना था। वह भी महिला को। वैसे आज-कल महिलाओं की अंग्रेज़ी बहुत अच्छी हुई है। डायरी पर डायरी रखी हैं नये साल की। मार्च बीत गया अप्रैल शुरू हो गया है। अभी तक एडजस्ट नहीं कर पाया हूँ कहाँ रखूँ। इस साल भी पिछले साल की डायरियों पर लिख रहा हूँ कुछ काम की बातें। पता नहीं लोग क्यों डायरियाँ बाँटते हैं। जिसको लिखना है, नये साल की डायरी ख़ुद ख़रीदे। दवा कम्पनियाँ तो लगता है पूरे वर्ष दवा से ज्यादा डायरियाँ बनाती हैं। थोक के हिसाब से बाँटती हैं। हर पेज़ पर एक गोली का नाम। चल रहा है सब। बस......चले चलो। कुछ घुटन-सी महसूस हो रही थी। सोचा सो जाऊँ, सोना बड़ा सुकून देता है। जो चाहो सोचो, कोई पहरेदारी नहीं। जिसकी चाहो उसकी बाट लगाओ सोते वक्त। जिस गाड़ी में चाहो.....बैठो। तमन्ना से लेकर जसला वाले बंगले में रहो। नेपाली गार्ड चार से दस रखो। सोते-सोते सांसद बनो, लेखक बनो, प्रधानमंत्री बनो। जो चाहो बनो। कभी-कभी गुलज़ार, रहमान और जावेद अख्तर भी बन जाओ। ओबामा भी बन सकते हो। मिशेल भी साथ होगी। नयी ड्रेस के साथ। पता क्यों नहीं गाँधी के सपने नहीं आते आजकल। तारों की सैर करो। बड़ी-बड़ी लम्बी-लम्बी बातें करना अच्छा लगता है। बड़े साहित्यकार की तरह। ओशो की भी कुछ किताबें ख़रीद लो। जूता-चप्पल सब पर बात करो। प्रचार करो जूते का। क्योंकि कम्पनी ने कुछ ग़ैर-इस्लामी लिखा है जूते पर। क़ीमत है चार हज़ार। ख़ूब मैसेज करो दोस्तों को चार हज़ार का जूता न पहनने की भड़ास निकालो। सब कुछ विचित्र-सा है न, पर अदभुत लगता है।

3 comments:

Comment by Shekhar Kumawat on April 8, 2010 at 11:05 AM

bahut khub

http://kavyawani.blogspot.com/


ahekhar kumawat

Comment by परमजीत सिहँ बाली on April 8, 2010 at 11:40 AM

बढिया प्रस्तुति।

Comment by huda on April 8, 2010 at 12:31 PM

thanks paramjeet bhai and thanks shekhar.

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